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गुम हुए चेहरों वाला भारत का लोकतंत्र

Ashwini Ahuja
Ashwini Ahuja
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कभी कभी मैं सोचता हूं कि हम संभ्रान्त लोग जिस भारत में रह रहे हैं क्या यह वैसा भारत है जिसकी हमने आजादी से पूर्व कल्पना की थी। आप कहेंगे निसंदेह ऐसे भारत की तो हमसे से शायद ही कभी किसी ने कल्पना की हो। भारत आज एक ऐसा देश प्रतीत होता है जहां अनदेखे लोगों की गिनती बहुतायत में है और यह गिनती दिन-ब-दिन निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। अगर भारत में ऐसे अनदेखे लोगों की गिनती का आज सही आकलन किया जाए तो यह गिनती यकीनन करोड़ों तक पहुंच सकती है। रिश्तों की गरिमा को पारिभाषित करने वाले नये नये दिनों के अविष्कार के बावजूद भी अनजाने लोगों की बढ़ती गिनती हमारे लिए चिन्ता का विषय होनी चाहिए लेकिन इसे विडम्बना ही समझा जाना चाहिए कि वेलेन्टाइन डे टाइप जैसे दिनों के बड़े बड़े आयोजनों के बावजूद भी ऐसी गिनती पर हमारी नज़र कभी नहीं पड़ती। हम एक दूसरे से अनजान बने रहकर भी प्रेम के प्रतीक व रिश्तों की उष्मा को नए सिरे से पारिभाषित करने वाले फादर डे, रोज डे, मदर डे आदि मना रहे हैं।

लेकिन सच यह है कि ऐसी गिनती को फादर डे, मदर डे, वीमेन डे, रोज डे और वेलेन्टाइन डे जैसे किसी भी डे से कुछ भी लेना देना नहीं होता। ऐसी गिनती की अपनी अलग ही दुनिया होती है जिनका नज़रिया हमारे दृष्टिकोण व सोच से बिल्कुल अलग होता है। नेताओं, राजनेताओं व मंत्रियों की तो बात छोडि़ए, हम लोग भी जिनका ऐसे लोगों से गाहे-बगाहे ही वास्ता पड़ता रहता है ऐसी गिनती की ओर गौर नहीं करते मानो इन लोगों का कोई अस्तित्व ही न हो। देश के तथाकथित पहरेदारों व नेताओं द्वारा ऐसे लोगों की पूछ व पहचान का कार्यक्रम चुनाव के मौसम मंे ही शुरू होता है। ये ऐसे लोग हैं जिनके पास चुनाव कमीशन की ओर से जारी किया गया मतदाता परिचय पत्र हैै। कईयों के पास बैंकों की पास-बुक व बहुतों के पास नई टेक्नाॅलाजी के मोबाइल फोन भी होते होंगे व ऐसे लोग बैंकों के एटीएम का इस्तेमाल भी करते होंगे बावजूद इसके ये लोग अनदेखे लोग हैं जिन्हें भारत के लोकतंत्र के गुम हो चुके चेहरांे के प्रतीक के रूप में समझा जाता है। लेकिन ऐसे लोगों का देश के विकास में उल्लेखनीय योगदान होता है। क्यों नहीं ऐसे लोगों को बताया जाता कि यह भारत उनका देश पहले है, राजनेताओं और अफसरों का बाद में जो उनके ही पैसे के बल पर उनका ही शोषण और उन पर ही शासन कर रहे हैं।
ऐसे अनदेखे लोगों में युवाओं व बेराजगारों की एक बहुत बड़ी फौज है जिन्होंने प्राचीन भारत को आज का नवीन विकासशील इंडिया बनाया है और उनके इस योगदान को कतई भुलाया नहीं जा सकता। इसके बावजूद ये लोग उच्च समाज व तुच्छ राजनीति का उपेक्षा का शिकार है। ऐसे लोगों का पूंजीपतियों की मनमानियों को शिकार हैं। वोट बैंक की धूर्त राजनीति इनका दोहन करने के कोई कसर नहीं छोड़ती।
दोस्तों, मेरा यह सब लिखने का उद्देश्य देश के ऐसे युवा व अभाग्यशाली समझे जाने वाले वर्ग को जागृत करना है कि वे किसी के बहकावे में न आएं। अपने भाग्य को निरन्तर कोसते रहने की बजाये अपने गुम हेा चुके चेहरे को एक नयी पहचान देने के लिए संघर्ष करें अन्यथा केवल वे ही नहीं, उनकी आने वाली पीढि़यां भी ही गुमनामी के अंधेरे में हमेशा-हमेशा के लिए डूबी रहेगी। ऐसे लोगों को यह समझने में कतई भूल नहीं करनी चाहिए कि ऐसी स्थिति का चुनाव उन्होंने नहीं किया है और न ही ऐसा होना उनकेे भाग्य में कहीं लिखा था। ऐसा कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए किसी षडयन्त्र के तहत किया गया है।

भाग्य की दुहाई कमजोर आदमी का अस्त्र है। बहादुर अपना भाग्य स्वयं लिखने की क्षमता रखते हैं। ऐसी स्थिति को समझे बिना भारत के बहुसंख्यक अनदेखे चेहरे देश में अपनी पहचान कभी भी नहीं बना सकेंगे। पढ़े लिखे व देश की प्रगति में योगदान देने के बावजूद भी वे सदैव सुविधाओं से वंचित ही रहेंगे। उन्हें धूर्त राजनैतिक तंत्र द्वारा निर्मित की गई स्थिति को बदलना होगा। कोई उन्हें वोट बैंक की राजनीति का शिकार बनाए व इस्तेमाल करे, उन्हें ऐसी स्थिति से बचना व विरोध करना होगा।

ऐसे लोग यह क्यांे नहीं सोचते कि आजादी के 64 साल बाद भी वे अभी तक क्यों नामहीन व शक्लहीन बने हुए हैं। क्यों वे आज तक तक देश की मुख्यधारा का अंग नहीं बन पाए है? तकनीकी क्रान्ति में योगदान के बावजूद भी क्यों वे अभी तक उसका हिस्सा नहीं बन पाएं हैं? मोबाइल फोन को जेब में रख लेने से क्या उनकी पेट की भूख मिट सकेगी? क्या मोबाइल फोन उनके लिए पानी का विकल्प बन सकेगा? क्या मोबाइल फोन उनके लिए बिजली के अभाव में सुख से जीने का सबब बन सकेगा।

भ्रष्टाचार के इस युग में आर्थिक सुधारों के नाम पर अक्सर जो हो हल्ला अक्सर होता रहता है, क्या ऐसे लोगों को उसका कोई लाभ मिला है। लाभ तो दूर की बात, मुझे तो यह भी नहीं लगता कि ऐसे लोगों ने आर्थिक सुधारों के बारे में कुछ सुना भी हो। ए राजा ने जनता के पैसों में एक लाख 70 हजार करोड़ रूपयों को किस तरीके से गोलमाल किया। कोयला भ्रष्टाचार के पीछे कौन सी ताकतें हैं, इन्हें इससे भी कोई मतलब नहीं। अगर ए राजा को तिहाड़ जेल में न भेजा गया होता तो उन्हें शायद पता ही नहीं चलता कि कोई 2 जी स्पैक्ट्रªªम नाम का घोटाला भी हुआ है। उन्हें इसरो घोटाले, कामनवेल्थ गेम्स आदर्श सोसायटी धोटाले व देश के सुपर कोयला घोटाले के बारे में तो कुछ पता ही नहीं है।

इन लोगों को तो बस इतना ही मालूम है कि अगर उन्हें प्याज 50-60 रुपये किलो मिलता है तो जरूर नेताओं ने कुछ न कुछ गड़बड़ की है। यह भी एक घोटाला है। लेकिन सब कुछ पर्दे के पीछे ही है। यह गड़बड़ हमारे कर्णधारों ने कितने शालीन, सभ्य व स्वच्छ तरीके से की गई है, इसके बारे में वे कुछ भी नहीं जानते होते। ऐसे लोग सिर्फ इतना ही समझते और जानते है कि नेताओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए। अफसर उनकी मदद के लिए नहीं बल्कि उन लोगों की मदद के लिए होते हैं जो राजनेताओं के पिट्ठू व मददगार होते हैं। उन लोगों का हर जगह दबदबा व शासन चलता है जो लोग नेताओं को लड्डूओं, सिक्कों आदि से तोलते हैं। ऐसे लोगों को न्याय पाने की नाउम्मीद मंे जीते हैं।
अखबारों में ऐसे लोगों को भारत के आकड़ें कहा जाता है। इन आकड़ों को शायद यह भी मालूम नहीं होता कि हमारी संसद में कुल कितने सदस्य है और इन्हें उन सांसदो से कुछ भी लेना देना भी नहीं है। इन आकड़ों को दरकार है, स्वच्छ पानी की, अच्छी सड़कों की, उनकी गलियां पक्की हों, पुलिस थानों में उनके साथ मनुष्यों जैसा सलूक किया जाए। अस्पताल में उन्हें डाक्टर मिल जाएं और उन्हें वे दवाएं उपलब्ध कराएं जो वास्तव में देश के गरीबों के लिए ही आती हैं। औरतें बच्चों को जन्म देते समय डाक्टरों की लापरवाही से मरें नहीं। उनके बच्चे जिन स्कूलों में पढ़ते है, वहां शिक्षक उनके बच्चों को दिल लगाकर पढ़ाएं। शिक्षा व उच्च नौकरियां सिर्फ अमीरों व कुबेरपतियांे के लिए ही न हो।
ऐसे लोग बनाम आकड़े जो देश के गरीब गुरबा लोगों के है, चाहते हैं कि उन्हंे सम्मान के साथ जीने दिया जाए। मन्दिर बने या किसी अफजल को फांसी हो या क्षमा याचना मिले, इन आकड़ों को इससे कुछ भी लेना देना नहीं होता। इन आकड़ों की समस्याआंे के बारे में जब हम अखबारों में पढ़ते हैं तो मन उदास होता है। देश में 65 प्रतिशत से भी ज्यादा ऐसे आकड़े हैं जो रात को भूखे सोते हैं और इससे भी ज्यादा आकड़े हैं जो पढ़ लिख नहीं सकते। 70 प्रतिशत से ज्यादा ऐसे लोग हैं जिन्हें समय पर चिकित्सा सुविधाएं मुहैया नहीं होती हैं। लेकिन हम लोग इन्हें देश पर बोझ मानते हैं क्योंकि ऐसे लोगों के कारण भारत एक गरीब देश है। ऐसे लोगों के कारण ही हमारी विदेशों में एक गरीब देश की छवि बनी हुई है।

ऐसे लोग हमारे फिल्म उद्योग से जुड़ी हस्तियों के लिए वरदान है। ऐसे लोगों की बदौलत ही आस्कर के सपने बुने जाते हैं। ऐसे लोग जब ट्रªªैफिक के बीच हमारी कार का शीशा खटखटाते हैं तो हम उन्हें दुत्कार पर भगा देते हैं। ऐसे लोगोें की भी कोई इच्छा, सपने या भावना हो सकती हैं, इसके बारे में हमने कभी गंभीरता से विचार ही नहीं किया बजाये इसके ऐसे लोगों पर फिल्मेें बनाकर परोसने में हमें पूरी दुनिया से शाबाशी मिलती है। जहां कहीं भी ऐसे लोग हमारे रास्ते में आते हैं हम पुलिस की मदद से ऐसे लोगों को दूर फिकवा देते हैं। हम नहीं चाहते कि ऐसे लोग हमारी नज़रों के सामने रहें। जितना वे हमारी नज़रों से दूर रहते हैं उतना ही हमारा जीवन सुखद बीतता है। ऐसे लोगांे का इस्तेमाल एक आम बात है। हमें समझते हैं कि हम सच्चे व ईमानदार नागरिक हैं क्योंकि हम समय पर टैक्स भरते हैं और यही हमारा दायित्व है, बाकी कार्य तो सरकारों का है कि इनके लिए कैसी योजनाएं बनाई जाती हैं। हमारे टैक्स के पैसे से जो योजनाएं बनती हैं, क्या इन लोगों को इसका लाभ भी मिलता है या नहीं, इस बात पर हम जरा भी ध्यान नहीं देते। हमारे ही पैसे से गरीब जनता की सेवा का दम भरने वाले हमारे ही राजनीतिज्ञ गरीबों की मदद के लिए रखी राशि को किस प्रकार उड़ा देते हैं हमें इसका पता ही नहीं चलता। और हम में कोई इस बात की परवाह भी नहीं करता। जो कोई नए लागू हुए आरटीआई कानून की तहत खर्च हुए पैसे की जानकारी मांगने का प्रयास करता भी है तो उसे भी ये लोग कुछ हिस्सा देकर चुप करवा देते हैं। यही कारण है कि आज भ्रष्ट्रªªªªाचार आसान हो गया है।

अपने देश के गरीब लोगों के लिए हमें शर्म आती है। हमंे अच्छी तरह याद है दिल्ली में राष्ट्रªमंडल खेलों के दौरान हमने किस तरह गरीबों की झोपड़पट्टियों के आगे बड़े बड़े स्वागती बैनर लगाकर अपने देश के गरीबों को विदेशी मेहमानों की नज़रों से बचाया था। गरीब हमारे लिए मुसीबत है। वे हमें हमारी नाकामियों की याद दिलाते हैं। हम दुनिया को यह बताना चाहते हैं कि हमने अन्तरिक्ष कार्यक्रमों में कितना नया हासिल कर लिया है। हमारी आर्थिक ताकत व रक्षा के क्षेत्र में हम कितना आगे निकल गए हैं और आईटी के क्षेत्र में हमने कितना नाम कमा लिया है। हमें यह कहते हुए गर्व होता है कि दुनिया के पहले दस अमीरों में चार भारतीय भी हैं। अपने देश की गरीबी का प्रदर्शन करके क्या हमें विदेशी लोगों के संमुख अपनी नाक कटवानी है। वही लोग जो हमारे नेताओं को उनकी कुर्सियों तक पहुंचाने वाले हैं वही लोग सरकारी उपेक्षा का शिकार है। हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए, जब तक भारत ऐसे अनदेखे लोगों की उपेक्षा करता रहेगा, तब तक भारत आगे नहीं बढ़ सकेगा।

मिस्त्रवासियों ने हमें एक सीख दे दी है चाहे कोई शासक कितना भी बड़ा व शक्तिशाली क्यों न हो, अगर वह गरीबों की उपेक्षा करे तो उसे भी राजगद्दी से उतारा जा सकता है। इससे पहले की आम व गरीब भारतीय को सड़क पर उतरना पड़े हमंे उनके लिए शर्म करनी छोड़ देनी चाहिए। उपेक्षा, अन्याय व भष्ट्रªªªªाचार की एक हद होती है। जब पानी नाक के उपर से गुजर जाए तो कुछ भी तहस नहस होने में देर नहीं लगती। बेहतर होगा कि गुम हुए चेहरों वाला भारत का लोकतंत्र अनदेखे लोगों की पहचान शुरू कर दे और उन्हें वे सब दे जिसके वे हकदार हैं।

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